रंगों का त्योहार होली इस बार 10 मार्च 2020 को पूरे देश में मनाई जाएगी। इससे पहले 9 मार्च को फाल्गुन महीने की पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन और 03 मार्च से होलाष्टक आरंभ हो जाएगा। होलाष्टक शुरू होने पर सभी तरह के शुभ कार्य थम जाते हैं। 03 मार्च को बरसाना में, 04 मार्च को नंदगांव में और 06 मार्च को मथुरा में लट्ठमार होली खेली जाएगी। फाल्गुन महीने में मनाई जाने वाली होली में इस बार क्या खास रहेगा आइए जानते हैं।
भद्रा रहित होली 2020 (holi 2020)
09 मार्च को फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा है और इसी दिन होलिका दहन होगी। इस बार होली भद्रा रहित रहेगी। जिस कारण से इसे बहुत ही शुभ माना जाता है। होली दहन 09 मार्च को जिसमें भद्रा दोपहर 1 बजकर 11 मिनट तक रहेगी। इसके बाद भद्रा का समय नहीं रहेगा।
होली 2020 में योग
होली 2020 में इस बार भद्रा नहीं लगने से विशेष फलदायी रहेगी। इस बार होली भद्रा रहित, ध्वज एवं गजकेसरी योग भी बन रहा है। इसके बाद 10 मार्च को रंग वाली होली में त्रिपुष्कर योग बनेगा। इस साल होली पर गुरु और शनि का विशेष योग बन रहा है। ये दोनों ग्रह अपनी-अपनी राशि में रहेंगे।
03 मार्च से होलाष्टक शुरू
शुभ कार्यों में वर्ज्य होलाष्टक 03 मार्च से आरंभ होकर 09 मार्च तक चलेगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन शुक्लपक्ष अष्टमी होलाष्टक तिथि का आरम्भ है। इस तिथि से पूर्णिमा तक के आठों दिनों को होलाष्टक कहा गया है। शुभ कार्यों के लिए वर्जित इन आठों दिनों के बारे में अनेकों पौराणिक घटनाओं का वर्णन मिलता है।
होलाष्टक कथा
प्रहलाद जन्म से ही ब्रह्मज्ञानी थे और हरपल भगवत भक्ति में लीन रहते थे, उन्हें सभी नौ प्रकार की भक्ति प्राप्त थी जिनका उन्होंने इस तरह वर्णन भी किया है - श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पाद सेवनम। अर्चनं वन्दनं दास्यंसख्यमात्म निवेदनम।| अर्थात- श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य, और आत्मनिवेदनम। भक्ति मार्ग के इस चरम सोपान को प्राप्त कर लेने के बाद प्राणी परमात्मा को प्राप्त कर लेता है। प्रहलाद भी इसी चरम पर पहुंच गये थे जिसका उनके पिता हिरन्यकश्यपु अति विरोध करते थे किंतु, जब प्रहलाद को नारायण भक्ति से विमुख करने के उनके सभी उपाय निष्फल होने लगे तो, उन्होंने प्रह्लाद को इसी तिथि फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को बंदी बना लिया और मृत्यु हेतु तरह तरह की यातनायें देने लगे, किन्तु प्रहलाद विचलित नहीं हुए। इसदिन से प्रतिदिन प्रहलाद को मृत्यु देने के अनेकों उपाय किये जाने लगे किन्तु भगवत भक्ति में लीन होने के कारण प्रहलाद हमेशा जीवित बच जाते।
इसी प्रकार सात दिन बीत गये आठवें दिन अपने भाई हिरण्यकश्यपु की परेशानी देख उनकी बहन होलिका (जिसे ब्रह्मा द्वारा अग्नि से न जलने का वरदान था) ने प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में भस्म करने का प्रस्ताव रखा जिसे हिरण्यकश्यपु ने स्वीकार कर लिया। परिणाम स्वरुप होलिका जैसे ही अपने भतीजे प्रहलाद को गोद में लेकर जलती आग में बैठी तो, वह स्वयं जलने लगी और प्रहलाद पुनः जीवित बच गए क्योंकि उनके लिए अग्निदेव शीतल हो गए थे। तभी से भक्ति पर आघात हो रहे इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है।
भक्ति पर जिस-जिस तिथि-वार को आघात होता उस दिन और तिथियों के स्वामी भी हिरण्यकश्यपु से क्रोधित हो उग्र हो जाते थे, इसीलिए इन आठ दिनों में क्रमश: अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध एवं चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए माने जाते हैं तभी से इन दिनों में गर्भाधान, विवाह, पुंसवन, नामकरण, चूड़ाकरन, विद्यारम्भ, गृह प्रवेश व निर्माण सकाम अनुष्ठान आदि अशुभ माने गये हैं। तभी से फाल्गुन शुक्ल अष्टमी के दिन से ही होलिकादहन स्थान का चुनाव किया जाता है, इस दिन से होलिका दहन के दिन तक इसमें प्रतिदिन कुछ लकड़ियां डाली जाती है, पूर्णिमा तक यह लकड़ियों का बडा ढ़ेर बन जाता है। पूर्णिमा के दिन शायंकाल शुभ मुहूर्त में अग्निदेव की शीतलता एवं स्वयं की रक्षा के लिए उनकी पूजा करके होलिकादहन किया जाता है। इन्हीं दिनों को होलाष्टक कहा गया है।
होलिका दहन तिथि - 09 मार्च 2020
होली -10 मार्च 2020
होलिका दहन मुहूर्त- 18:26 से 20:52 बजे
पूर्णिमा तिथि आरंभ ( 09 मार्च 2020) - 03:03 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त( 09 मार्च 2020) - 23:17 बजे
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