प्राचीन समय की बात है नर्मदा नदी की किनारे एक राज्य था।उस राज्य का नाम कांचनवटी था नाम उस राज्य में एक राजा राज करते थे जिनका नाम मलय केतु था। उसी नर्मदा नदी के एक दिशा में मरू भूमि था। उस मरू भूमि में ही एक विशाल पाकड़ का पेड़ था। उसी पाकड़ पर एक चील रहता था। उसी पेड़ के निचे में एक बड़े धोधैर या बाड़ा सा होल था जिसमे एक सियार भी रहता था। दोनों में बहुत ही घनिष्ट मितत्रता था।
एक समय की बात है जब उस नगर की महिलाये नदी में करने आयी तथा वो कुछ पूजा पाठ भी कर रही थी। इन महिलाओ को देख चील ने सियार पूछा की नगर सारी महिलाये आज एक साथ नदी में स्नान करने को क्यों एकत्रित हुई है।
तब सियार ने चील को बताया कि आज अश्विन माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि है और महिलाये अपने पुत्र की लम्बी आयु तथा उनके सलामती के लिए जीवित्पुत्रिका नामक व्रत का संकल्प लेने नदी में आयी है।
इस बात को सुन चील कहा क्या हम भी यह व्रत रख सकते है , तो सियार ने बोला क्यों नहीं।
तब चील ने कहा की ठीक है फिर आज हम दोनों भी इस व्रत का संकल्प लेते है। और यह व्रत हम भी संपन्न इन महिलाओ की तरह करेंगे।
फिर उन दोनों ने जीमूतवाहन जी की पूजा निर्जला व्रत रखकर किया। परन्तु उसी रात एक अप्रिय घटना घट गयी। हुआ ऐसा की उसी दिन उस नगर के एक बड़े व्यपारी मृत्यु हो गयी। तो उसका दाह - संस्कार करने के लिए उसे उसी मरू भूमि में लाया गया। जब उसको जलाया जा रहा था तभी बारिस सुरु हो गयी जिसकी वजह से लोग उसको अध - जला अवस्था छोर कर चले गए।
यह सब धोधर में बैठा सियार देख रहा था। उसको पहले ही बहुत भूख लग रही थी। यह सब देख उसका भूख और तेज हो गया तब उसने चील से व्रत तोडने को कहा परन्तु चील ने मना कर दिया।
कुछ देर बाद फिर सियार ने चील को आवाज देकर कहा।परन्तु ऊपर से कोई आवाज नहीं आयी तो सियार को लगा की वो सो गयी है। उसको सोता जान सियार अपने धोधर से निकल कर उस स्थान पर गया और भर पेट मांस खाया तथा कुछ लेकर भी आया और उसको अपने धोधर में सुबह के लिये रखा यह सब पेड़ पर बैठा चील देख रहा था।
परन्तु उसने कुछ नहीं बोला और अपना व्रत विधिवत संपन्न किया। वह आम महिलाओ के भाति सुबह उठकर नदी में स्नान किया तथा महिलाओ द्वारा छूटा हुआ परण सामग्री से अपना व्रत संपन्न किया। इधर वह सियार सुबह में भी उसी मांस को खाया। धीरे -धीरे समय व्यतीत हुआ।
मरणोपरांत उनका जन्म इस ही घर में बहन के रूप में हुआ।बड़ी बहन जो की पूर्व जन्म में चील थी उसका नाम सीलवती रखा गया तथा छोटी बहन जो पूर्व जन्म में सियारन थी उसका नाम कर्पूरावती रखा गया ।
धीरे धीर वो पिता के घर बड़ी होने लगी तथा विवाह का समय निकट आया। तो सिलावती का विवाह बुद्धिसेन नामक व्यक्ति से संपन्न हुआ तथा छोटी बहन का विवाह उस नगर के राजा मलयकेतु के साथ हुआ।
सिलावती को पूर्व जन्म में किये गए व्रत के प्रभाव से साथ पुत्र रतन प्राप्त हुए तथा कर्पूरावती के संतान पूर्व कर्म के कारण जन्म लेते मृत्यु को प्राप्त हुए। इधर बड़ी बहन के सतो पुत्र समय के साथ बड़े हुए और छोटी बहन के ही राज दरवार में नौकरी करने लगे। जिससे ईर्ष्या में भरकर रानी कर्पूरावती ने अपने पति की सहमति से बहन के सतो पुत्र का सर कटवा कर सात थाल में लाल कपड़ो में लपेट कर सिलवाती को भिजवाया।और बहुत खुश हुई।
परन्तु भगवान जीमूतवाहन ने मिटटी का सर बनाकर सतो के धर से जोड़कर उसपर अमृत चिड़क दिया जिससे सिलावटी सतो पुत्र राम- राम खड़े हुए मानो नींद से उठे हो और अपने घर गए। इधर जो सतो सर था यह नारियल में परिवर्तित हो गया।
जब कोई समाचार नहीं आया तो कर्पूरावती चिंतित हुई तथा समाचार जानने के लिए सेना को सिलावती के घर भेजा वहा सब ठीक देखकर कर्पूरावती को आकर सब बताया।
तो उन्हें रहा नहीं गया और अपनी बहन के घर जाकर देखा और पूछा की आपने ऐसा कौन का व्रत या कर्म किया जिससे आपके सरे संतान जीवित है और अपने किये पर मन ही मन पछता रही थी ,
तो सिलावती जीमुतबाहन व्रत के बारे में बताया तो बहन कहा इसबार मै भी आपके साथ यह व्रत करुँगी।
व्रत का दिन आया तो सिलावती ने अपनी बहन को उसी नदी में किनारे ले गयी और पाकड़ के वृक्ष को दिखा कर पूर्व जनम का वृतांत सुनाया ।
जिसको सुन वह वही मूर्छित हो गयी तथा वही तत्काल मृत्यु हो गयी। जब राजा को इस बात की सुचना मिली तो उनका दाह संस्कार वही किया।
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