भारतवर्ष त्योहारों का देश है यहाँ लोग भिन्न-भिन्न भाँति के त्यौहार और उपवास , व्रत में विश्वास रखती है यहाँ लोग कोई भी व्रत और त्यौहारबहुत ही श्रद्धा और संयम के साथ के साथ करते है।
इन त्योहारों और व्रतों में जीतिया यानि जीवित पुत्रिका व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत निर्जला किया जाता है जिसमे पुरे दिन और रात में भी पानी तक नहीं पिया जाता है। यह व्रत माताये अपने पुत्र के लिए रखती है।
जितिया यानि जीवित पुत्रिका व्रत को सामान्यतःहिन्दू धर्म के लोग हीअपने पुत्र की लम्बी उम्र के लिए बड़े ही धूमधाम से मानते है ।यह व्रत तीन चारदिनों तक मनाया जाता है।
सामान्यतः महिलाये ही यह व्रत पुत्र प्राप्ति को उनकी लम्बी आयु और सलामतीके लिए रखती है।विवाहित स्त्री पुत्र लिए तथा पुत्रवती स्त्री पुत्र की सलामती के लिए यह व्रत करती है।
यह व्रत हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन माह के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को प्रदोष काल में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो महिलाये यह व्रत पुरे श्रद्धा और विश्वास के साथ करती है , भगवान जिमुतवाहन उनके संतान पर आने वालीसभीप्रकार के बधाओ और विपत्तियों का नाश करते है और सभी प्रकार के आने वाले संकट तथा समस्याओ से उनके संतान की रक्षा करते है।इस व्रत में कथा सुनने विशेष महत्व है।
प्रायः इस दिन दो कथाओ को सुनने की मान्यता है जो निम्नलिखित है:-
प्राचीन समय की बात है। गन्धर्व राज में एक राजा राज करते थे जिनके पुत्र कानामजीमूत वहानथा। जिनकास्वाभाव बड़ाही उदारवादी था।जबउनके पिता बूढ़े हो गए और राज- पथ का काम सँभालने के लिए उनको राज सिंहासन पर बैठना चाहा। तो साफ मना कर दिया पर पिता के बार - बारकहने पर वो मना नहीं कर पाए और उन्हें सिंहासन पर बिठा कर उनके पिता जंगल में समय व्यतीत करने को चले गए।
कुछ समय तो जीमूतवाहन ने कैसे भी बिताया पर उनका मन अपने पिता के बिना राज- पाठमें नहीं लगता था। कुछ समय बाद उन्होंने अपने भाईयो को अपना राज -पाठदेकर वो भी जंगले को अपने पिता के पासचले गए।
बाद में वही उनका विवाह मलयवतीनामकराजकुमारी के साथसंपन्न हुआ। और वो ख़ुशी- ख़ुशी लगे। एक समय की बात है। जब जीमूतवाहन भ्रमण के लिए निकले तो वो चलते- चलते बहुत दूर निकल गए।
उसी समय उनको एक वृद्ध स्त्रीनजर आयी ,जो बहुत करूँ क्रंदन कर रही थी, तो उन्होंने उस वृद्ध स्त्री से पूछा की हे माता आप इस सुनसान जगह पार अकेली क्यों है और आप ऐसेरो क्यों रही है। कृपा कर बताये।
तब उस वृद्ध स्त्री ने बताया कि हे महापुरुष मै नागवंशी स्त्री हूँ। नाग प्रजाति के समस्त लोगोने मिलकर पक्षी राज गरूर को ये वचन दिया है की हमलोग प्रतिदिनभोजन स्वरुप अपने आप को आपके समक्षअर्पित करेंगे। उनको प्रतिदिन एक सर्प भोजन स्वरुप अर्पित किया जाता है।
हे महा पुरुष आज मेरे पुत्र की बारीहै, लेकिन मेरा एक हीपुत्र है और वो मेरा एक मात्रा सहारा है।जिसका नाम शंखचूर है।
तब राजा जीमूतवाहन ने उस वृद्धा स्त्री को आस्वाशनदेते हुए उनसे कहा कि हे माता आप चिंता न करे मै आपके पुत्र की जान बचाने का आपको वचन देता हूँ। आजमैआपके पुत्र शंखचूर केजगह पक्षी राज गरूर के समक्ष खुद को अर्पित करूँगा। और उन्होंने ऐसा ही किया निश्चित समय पर पक्षी राज गरूर आये और जीमूतवाहन को अपने पंजो मेंजकड़ कर एक ऊंचे पहाड़ी पर ले गए। पर उसने उस व्यक्ति के आँखों में न तो डर देखा और न भय तो पक्षी ने जीमूतवाहन जी से उनका परिचय पूछा , तो उन्होंने गरूर को अपनीसारीकहानीबताई।
गरूर उनकी बाते सुनकरबहुत प्रशन्न हुए और उनको जीवन दान देदिया। और निश्चय किया की आज से वे किसी नाग को अपने भोजन केसमर्पित होने को नहीं कहेंगे।और गरूर जीने आज के बादअपने भोजन लिएकिसी नाग का प्राण नहीं लेने का वचन दिया।
उसी समय से जीतिया में जीमूतवहान व्रत कथा का प्रचलन है।
येतो हुईभगवान जीमूतवाहन व्रत कथा और दूसरा है ,चील और सियारिन की कथा यह कथा दिन सुना जाता है जोनए पोष्ट में है।
Read चील और सियार की कथा।