श्री सूर्य देव चालीसा

श्री सूर्य देव चालीसा

Posted By Admin on Saturday May 14 2022 159
Bhakti Sagar » Chalisa


श्री सूर्य देव चालीसा

surya

॥दोहा॥

कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग।

पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥

॥चौपाई॥

जय सविता जय जयति दिवाकर!। सहस्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥

भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!। सविता हंस! सुनूर विभाकर॥

विवस्वान! आदित्य! विकर्तन। मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥

अम्बरमणि! खग! रवि कहलाते। वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥

सहस्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि। मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥

अरुण सदृश सारथी मनोहर। हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥

मंडल की महिमा अति न्यारी। तेज रूप केरी बलिहारी॥

उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते। देखि पुरन्दर लज्जित होते॥

मित्र मरीचि भानु अरुण भास्कर। सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥

पूषा रवि आदित्य नाम लै। हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥

द्वादस नाम प्रेम सों गावैं। मस्तक बारह बार नवावैं॥

चार पदारथ जन सो पावै। दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥

नमस्कार को चमत्कार यह। विधि हरिहर को कृपासार यह॥

सेवै भानु तुमहिं मन लाई। अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥

बारह नाम उच्चारन करते। सहस जनम के पातक टरते॥

उपाख्यान जो करते तवजन। रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥

धन सुत जुत परिवार बढ़तु है। प्रबल मोह को फंद कटतु है॥

अर्क शीश को रक्षा करते। रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत। कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥


 

भानु नासिका वासकरहुनित। भास्कर करत सदा मुखको हित॥

ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे। रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥

कंठ सुवर्ण रेत की शोभा। तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥

पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर। त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥

युगल हाथ पर रक्षा कारन। भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥

बसत नाभि आदित्य मनोहर। कटिमंह, रहत मन मुदभर॥

जंघा गोपति सविता बासा। गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥

विवस्वान पद की रखवारी। बाहर बसते नित तम हारी॥

सहस्रांशु सर्वांग सम्हारै। रक्षा कवच विचित्र विचारे॥

अस जोजन अपने मन माहीं। भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥

दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै। जोजन याको मन मंह जापै॥

अंधकार जग का जो हरता। नव प्रकाश से आनन्द भरता॥

ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही। कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥

मंद सदृश सुत जग में जाके। धर्मराज सम अद्भुत बांके॥

धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा। किया करत सुरमुनि नर सेवा॥

भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों। दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥

परम धन्य सों नर तनधारी। हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥

अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन। मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥

भानु उदय बैसाख गिनावै। ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥

यम भादों आश्विन हिमरेता। कातिक होत दिवाकर नेता॥

अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं। पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं॥

॥दोहा॥

भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।

सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥

Related Posts

Popular Posts

harsu brahma temple, Bhabhua Bihar

harsu brahma temple, Bhabhua Bihar

SRI CHITRAGUPTA TEMPLE, HUPPUGUDA, HYDERABAD-PARIHARA TEMPLE FOR KETU DOSHA

SRI CHITRAGUPTA TEMPLE, HUPPUGUDA, HYDERABAD-PARIHARA TEMPLE FOR KETU DOSHA

KAYASTHA SURNAMES

KAYASTHA SURNAMES

श्री चित्रगुप्त भगवान वंशावली

श्री चित्रगुप्त भगवान वंशावली

श्री चित्रगुप्त भगवान परिवार

श्री चित्रगुप्त भगवान परिवार

सूर्य देव के 108 नाम- Surya Bhagwan Ji Ke Naam

सूर्य देव के 108 नाम- Surya Bhagwan Ji Ke Naam

FAMILY OF SHEE CHITRAGUPTA JI

FAMILY OF SHEE CHITRAGUPTA JI

Kayastha culture

Kayastha culture

श्री सूर्य देव चालीसा

श्री सूर्य देव चालीसा

Powerful Mantras - मंत्रो की शक्ति

Powerful Mantras - मंत्रो की शक्ति

Beautiful idol of Maa Durga

Beautiful idol of Maa Durga

Happy Holi : IMAGES, GIF, ANIMATED GIF, WALLPAPER, STICKER FOR WHATSAPP & FACEBOOK

Happy Holi : IMAGES, GIF, ANIMATED GIF, WALLPAPER, STICKER FOR WHATSAPP & FACEBOOK

कायस्थानांसमुत्पत्ति (Kayasthanamsamutpatti) - Kayastha Utpatti with Hindi

कायस्थानांसमुत्पत्ति (Kayasthanamsamutpatti) - Kayastha Utpatti with Hindi

Hindu Calendar 2024 Festvial List

Hindu Calendar 2024 Festvial List

Kaithi script

Kaithi script

SHREE VISHNU SAHASRANAMAVALI  ।। श्री विष्णुसहस्त्रनामावलिः ।।

SHREE VISHNU SAHASRANAMAVALI ।। श्री विष्णुसहस्त्रनामावलिः ।।

Navratri Vrat Katha : नवरात्रि व्रत कथा

Navratri Vrat Katha : नवरात्रि व्रत कथा

कायस्थ समाज एवं नागपंचमी

कायस्थ समाज एवं नागपंचमी

Sunderkand Paath in hindi- सुन्दर  कांड-  जय श्री राम

Sunderkand Paath in hindi- सुन्दर कांड- जय श्री राम

देवीमाहात्म्यम्  या दुर्गा सप्तशती (मार्कण्डेय पुराण)

देवीमाहात्म्यम् या दुर्गा सप्तशती (मार्कण्डेय पुराण)