भागवत गीता का पन्द्रहवां अध्याय

भागवत गीता का पन्द्रहवां अध्याय

Posted By Admin on Wednesday August 17 2022 66
Bhakti Sagar » Shree Krishna


भागवत गीता का पन्द्रहवां अध्याय

 

chapter-15

 

 

श्री भगवान बोले-संसार अश्वस्थ (पीपल) के सामान है जिस की पुराण पुरुष जड़ ऊपर है और चराचर शाखा निचे है वेद इसके पते है, जो यह जानता है वही वेद का ज्ञाता है| इसकी शाखाएं ऊपर निचे फैली हुई है, सत्व, रज और तम गुण इसकी रस वाहिनी नसें  जिनसे पालन होता है शब्द रूप इसकी डालियाँ है पीछे कर्म रूप में प्रकट होने वाली इसकी जड़े निचे मनुष्य लोक में और भी निचे तक चली गई है| पर अश्वस्थ का यह रूप इसका आदि अंत और आकार संसारी प्राणी के ध्यान में नहीं आता तथा इसकी जड़ गहरी है ऐसे इस पीपल को वैराग्य रूपी दृढ़ शास्त्र से काटकर| वह स्थान ढूंढ़ना चाहिए जहां से फिर लौटना नहीं पड़ता और साथ ही वह विचारना चाहिए की जिसमे वह पुरातन प्रवृति उत्पन्न हुई है| उसी आदि पुरुष की शरण हूँ| अहंकार और मोह रहित संग दोष को जितने वाले आत्मज्ञान से निरत, सब कामनाओं से दूर सुख दुःख नामक दृन्द पदार्थ से मुक्त ऐसे ज्ञानी पुरुष शाश्वत पद को पाते है| जिसे सूर्य, चंद्र, या अग्नि प्रकशित नहीं करते वही मेरा परमधाम है, वहां जाकर लौटना नहीं होता| मेरा सन्तान अंश जोवलोक में जिव का रूप घर कर प्रकृति में सिथत पांचों इन्द्रियों और छठें मन को उससे छुड़ता है, जैसे वायु पुष्पादि को गंध को दूसरे स्थान में ले जाता है इसी पारकर यह देह स्वामी शरीर धरना करने के बाद जब उसका परित्याग  इन्द्रिया और मन को साथ ले जाता है| कान, आँख, चर्म, जीभ, नाक और मन का आश्रय लेकर वह जिव विषयों का भोग करता है| एक देह से दूसरी देह जो जाते अथवा एक ही देह में रहते समय अथवा इन्द्रियों से युक्त हो विषयो का उपभोग करते हुए इसको मुर्ख देख नहीं सकते किन्तु ज्ञान रूप नेत्र से वे देखते है| यत्न करने से योगीजन इसे देखते है| परन्तु अज्ञानी यत्न करके भी इसे नहीं देख पाते| जो तेज सूर्य चन्द्रमा और अग्नि में वर्तमान है और जगत को प्रकाशित करता है उसे मेरा ही तेज जानो| मैं ही पृथ्वी में प्रवेश कर अपने तेज से समस्त जीवो भूतों को धारण करता हूँ| और इनमे भरा हुआ चंदमा बन कर मैं ही सब औषधियों को पोषण करता हूँ| मैं जठराग्नि होकर प्राणियों के देह में प्रविष्ट हूँ और प्राण वायु अपान वायु से संसुक्त होकर चारों प्रकार (भक्ष्य, भोज्य, चोष्य, लेहा) से भोजन किय हुए प्राणियों के अन्न को पचाता हूँ| मैं सम्पूर्ण भूतों के हृदय कमल में निवास करता हूँ मुझसे ही स्मृति ज्ञान और उनका नाश होता है| सब वेदों में जानने योग्य मैं ही हूँ| वेदांत का कर्ता और वेदों का ज्ञाता  मैं ही हूँ| इस संसार में क्षर और अक्षर दो पुरुष है, जितने नाशवान प्राणी है वे क्षर कहलाते है और उसमे कटस्थ अर्थात शौल शिखर के भांति स्थिर चैतन्य को अक्षर कहते है| किन्तु उत्तम पुरुष परमात्मा, विकार रहित सर्व नियंता वृद्ध, मुक्त नित्यरूप, तीनों लोकों में प्रविष्ट होकर धारण पोषण करता है वह इन दोनों से अगल है| मैं क्षर और अक्षर में उत्कृष्ट हूँ इसी कारण से लोक और वेदों मैं पुरुषोत्तम नाम से विख्यात हूँ| हे भारत ! जो उत्तम ज्ञानी जन इस प्रकार से मुझको पुरुषोत्तम जानता   जानता है और सर्वत्रों भावेन मेरा ही स्मरण करता है| हे भारत! शास्त्र के गुहा भेद की जो मन कहा है  बुद्धिमान पुरुष कृत कृत्य होता है| 

भागवत गीता का पन्द्रहवां अध्याय समाप्तम 

 

भागवत गीता का पन्द्रहवां अध्याय का माहात्म्य 

 

 

श्री नारायण जी बोले- हे लक्ष्मी! अब पन्द्रहवां अध्याय का माहात्म्य सुन| उत्तर देश में एक नृसिंह नाम राजा था और सुभग नाम मंत्री था| राजा को मंत्री पर बड़ा भरोसा था, मंत्री के मन में कपट था, मंत्री चाहता था को मारकर राज्य मैं ही करूँ इसी भांति कुछ काल व्यतीत हुआ एक दिन राजा नौकर चकारों सहित सो रहा था तब मंत्री राजा को सारे नौकरों समते मारकर राज्य करने लगा| राज्य करते बहुत काल व्यतीत हुआ| एक दिन वह भी मर गया यमराज के पास दूत बांधकर ले गए| धर्मराज ने कहा हे यमदूतों ! यह बड़ा पापी है इनको घोर नर्क में डालो| हे  लक्ष्मी इसी प्रकार वह पापी की नर्क भोगता -२ धर्मराज की आज्ञा से घोड़े की योनि में आया| संगलदीप में जाय धोड़ा भया| बड़े घोड़ों के सौदागर उसे मोल ले तथा और भी घोड़े खरीद कर अपने देश को चला चलते-२ अपने देश में आया तब वहां के राजा ने सुना की आमुक सौदागर बहुत से घोड़े ले आया है| तब राजा ने उसे बुलाया, देखकर घोड़े खरीदे उस घोड़े को भी ख़रीदा जब उस घोड़े को फेरा तब राजा को देखकर इसने सिर फेरा राजा ने देखकर कहा यह क्या बात है घोड़े ने सिर फेरा है| तब राजा ने पंडित बुलाकर पूछा की इस घोड़े ने हमको देखकर शिर फेरा है| इस का क्या कारण है? पंडित ने कहा हे राजन! इस घोड़े ने तुमको सिर नवाया है राजा ने कहा यह बात नहीं की दिन पीछे राजा शिकार खेलने को उसी घोड़े पर सवारी करके गया| वह धोड़ा जल्दी चलता था राजा शिकार खेलता -२ बहुत दूर चला गया उस दिन हाथों हाथ राजा ने शिकार पकड़ के मारी राजा बहुत प्रसन्न हुआ दोपहर हो गई राजा जो तृषा लगी, वन में एक अतीत देखा राजा उतरा धोड़ा वृक्ष से बांध कर कुटिया में गया देखा तो साधु अपने पुत्र को भागवत गीता का पन्द्रहवां अध्याय का पाठ सिखा रखा है वृक्ष के पते पर श्लोक लिख दिया है बालक को कहा खेलते फिरो और इसको कंठ भी करो, जिस वृक्ष से राजा ने घोड़ा बांधा था, उसी वृक्ष के पते पर श्री गीता जी का श्लोक लिखा था, वह बालक पता लेकर खेले भी पढ़े भी| उस पते को घोड़े ने देखा तत्काल उसकी देह छूटी देवदेहि पाई स्वर्ग से विमान आय उस पर बैठ कर बैकुंठ को चला| इतने में राजा पानी पीकर बाहर आया देखे तो धोड़ा मरा पड़ा है| राजा चिंता वान होकर बोला यह धोड़ा किसने मारा| इसे क्या हुआ इतने में वह बोला हे राजन! तेरे घोड़े का चैतन्य मैं हूँ मैंने अब देवदेहि पाई है बैकुंठ को चला हूँ| राजा ने पूछा तुमने कौन पुण्य किया है हे राजन यह बात ऋषिश्वर से पूछो! राजा से मुनिवर ने कहा है राजन गीता का श्लोक लिखा हुआ पता इसके आगे पड़ा है, घोड़े ने अक्षर देखे है, इस कारण घोड़े की गति हुई| राजा ने पूछा धोड़ा कौन था और घोड़े को शिर फिरने की बात भी राजा ने कही| मुनीश्वर ने कहा राजन पिछले जन्म में तू राजा था यह तेरा मंत्री था, यह तुमको मारकर राज्य करता था, तू फिर राजा हुआ| यह मरकर धर्मराज के पास गया धर्मराज ने इसे नर्क में जानेको कहा| बड़े नर्क भोगता-२ घोड़े के जन्म में आया संगलदीप आकर तेरे पास बिका जब इसने शिर हिलाया तब कहा था हे राजन तू मुझे पहचनता नहीं परन्तु मैं तुझको पहचानता हूँ यह  चुप हो गया | राजा ने विसिमित होकर दंड की पीछे  लोग आये मिले  सवार हो अपने घर अपने पुत्र को राज्य देकर आप वन को गया| तप  श्री गीताजी का पन्द्रहवां अध्याय का पाठ किया करे जिसके प्रसाद से राजा भी परम गति का अधिकार हुआ| श्री नारायण जी बोले हे लक्ष्मी! भागवत गीता का पन्द्रहवां अध्याय का यह माहात्म्य मैंने तुमको सुनाया है| 

भागवत गीता का पन्द्रहवां अध्याय समाप्तम 

 

Related Posts

Popular Posts

harsu brahma temple, Bhabhua Bihar

harsu brahma temple, Bhabhua Bihar

SRI CHITRAGUPTA TEMPLE, HUPPUGUDA, HYDERABAD-PARIHARA TEMPLE FOR KETU DOSHA

SRI CHITRAGUPTA TEMPLE, HUPPUGUDA, HYDERABAD-PARIHARA TEMPLE FOR KETU DOSHA

KAYASTHA SURNAMES

KAYASTHA SURNAMES

श्री चित्रगुप्त भगवान वंशावली

श्री चित्रगुप्त भगवान वंशावली

श्री चित्रगुप्त भगवान परिवार

श्री चित्रगुप्त भगवान परिवार

FAMILY OF SHEE CHITRAGUPTA JI

FAMILY OF SHEE CHITRAGUPTA JI

सूर्य देव के 108 नाम- Surya Bhagwan Ji Ke Naam

सूर्य देव के 108 नाम- Surya Bhagwan Ji Ke Naam

Kayastha culture

Kayastha culture

श्री सूर्य देव चालीसा

श्री सूर्य देव चालीसा

Powerful Mantras - मंत्रो की शक्ति

Powerful Mantras - मंत्रो की शक्ति

Beautiful idol of Maa Durga

Beautiful idol of Maa Durga

Happy Holi : IMAGES, GIF, ANIMATED GIF, WALLPAPER, STICKER FOR WHATSAPP & FACEBOOK

Happy Holi : IMAGES, GIF, ANIMATED GIF, WALLPAPER, STICKER FOR WHATSAPP & FACEBOOK

कायस्थानांसमुत्पत्ति (Kayasthanamsamutpatti) - Kayastha Utpatti with Hindi

कायस्थानांसमुत्पत्ति (Kayasthanamsamutpatti) - Kayastha Utpatti with Hindi

Hindu Calendar 2024 Festvial List

Hindu Calendar 2024 Festvial List

Kaithi script

Kaithi script

SHREE VISHNU SAHASRANAMAVALI  ।। श्री विष्णुसहस्त्रनामावलिः ।।

SHREE VISHNU SAHASRANAMAVALI ।। श्री विष्णुसहस्त्रनामावलिः ।।

Navratri Vrat Katha : नवरात्रि व्रत कथा

Navratri Vrat Katha : नवरात्रि व्रत कथा

कायस्थ समाज एवं नागपंचमी

कायस्थ समाज एवं नागपंचमी

देवीमाहात्म्यम्  या दुर्गा सप्तशती (मार्कण्डेय पुराण)

देवीमाहात्म्यम् या दुर्गा सप्तशती (मार्कण्डेय पुराण)

Sunderkand Paath in hindi- सुन्दर  कांड-  जय श्री राम

Sunderkand Paath in hindi- सुन्दर कांड- जय श्री राम