करवा चौथ कब आता है - कौन से महीने में

करवा चौथ कब आता है - कौन से महीने में

Posted By Admin on Saturday May 14 2022 75
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करवा चौथ कब आता है - कौन से महीने में 

 

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। करवा चौथ के व्रत का पूर्ण विर्ण वामन पुराण में किया गया है। यह व्रत हर साल आता है लेकिन सही विधि से न करने की वजह से इसका फल नहीं प्राप्‍त हो पाता। सुहागिन महिलाओं के लिये यह दिन काफी अहम है क्‍योंकि वह यह व्रत पति की लंबी आयु और घर के कल्‍याण के लिये रखती हैं।

यह व्रत केवल शादी-शुदा महिलाओं के लिये ही होता है। अक्‍सर महिलाएं अपनी मां या फिर अपनी सास से करवा चौथ करने की विधि सीखती हैं लेकिन अगर आप अपने घर से दूर रहती हैं और यह व्रत करना चाहती हैं तो इसकी विधि जाननी जरुरी है। तो आइये जानते क्‍या है करवा चौथ के कथा और व्रत की सही विधि।

करवा चौथ व्रत के लिए आवश्यक सामग्री- Karwa Chauth Vrat Samagri in Hindi

1. करवा चौथ कि किताब: यह किताब कथा पढ़ने के लिये जरुरी है। इस कथा कि किताब में लिखी हुई कहानी को घर की कोई बुजुर्ग महिला या फिर पंडित जी पढते हैं।

2. पूजा थाली (Karwa Chauth Thali): पूजा की थाली में रोली, चावल, पानी से भरा करवा लोटा, मिठाई, दिया और सिंदूर रखें। पंजाब में व्रत रखने वाली महिलाएं थाली में स्‍टील की छननी, पानी भरा गिलास और लाल धागा रखती हैं तो वहीं पर राजस्‍थान में महिलाएं गेहूं, मिट्टी आदि रखती हैं।

3. करवा: काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर रख लें. अब इस मिटटी को तांबे के करवा में रखें.

4. श्रृंगार वस्‍तुएं: अपने पति को लुभाने के लिये महिलाएं उस दिन दुल्‍हन की तरह श्रृंगार करती हैं। हाथों में महंदी और चूडियां पहनती हैं।

5. पूजन विधि (Karwa Chauth Puja Vidhi): बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें। पश्चात यथाशक्ति देवों का पूजन करें।

6. खाने की वस्‍तुएं: हर घर में अलग-अलग प्रकार की मिठाइयां बनाई जाती हैं। कई लोग कचौड़ी, सब्‍जी और अन्‍य व्‍यंजन बनाते हैं।

करवा चौथ व्रत विधि – Karwa Chauth Puja Vidhi

करवा चौथ वाले दिन सुहागिन महिलायें यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’

करवा चौथ के दिन गणेश, शिव, पार्वती, कार्तिकेय और चंद्रमा की पूजा की जाती है। अतः दीवार पर या किसी कागज़ पर इन सभी के चित्र बनाकर पूजा की जाती है। पूजा करते वक़्त एक लोटे में जल और गेहूं से भरा एक करवा रखते है।

करवाचौथ को पुरे दिन महिलायें बिना अन्न व जल के रहती है। शाम को करवाचौथ की कहानी सुनी जाती है तथा विधिपूर्वक गणेश, शिव और पार्वती की पूजा की जाती है। पूजन के पश्चात रात्रि के समय छननी के प्रयोग से चंद्र दर्शन करें उसे अर्घ्य प्रदान करें। फिर पति के पैरों को छूते हुए उनका आर्शिवाद लें। फिर पति देव को प्रसाद दे कर भोजन करवाएं और बाद में खुद भी करें।

करवाचौथ उद्यापन विधि (Karva Chauth Udyapan Vidhi in Hindi)

 

 

  • करवा चौथ के उद्यापन के लिए तेरह ऐसी महिलाओं को, जो करवा चौथ का व्रत कर रही हों, अपने घर भोजन पर बुलाए ये महिलाएं करवा चौथ का पूजन खुद के घर पर करके आपके यहाँ आकर व्रत खोलेंगी और भोजन करेंगी। आप अपने घर पर हलवा पूड़ी और सुविधानुसार खाना बनाये। एक थाली में चार-चार पूड़ी तेरह जगह रखें। इन पर थोड़ा-थोड़ा हलवा रखें। थाली पर रोली से टीकी करके चावल लगाएं। हाथ में पल्लू लेकर सात बार इस थाली के चारों और घुमाएँ। यह पूड़ी हलवा आमन्त्रित की गई तेरह महिलाओं को भोजन से पहले दिया जाता है।
  • एक दूसरी थाली में सासु माँ के लिए भोजन रखें। उस पर एक बेस , सोने की लोंग , लच्छा , बिंदी , काजल , बिछिया , मेहंदी , चूड़ा आदि सुहाग के सामान रखें ,साथ में कुछ रूपये रखें। हाथ में पल्लू लेकर हाथ फेरकर इसे सासु माँ को दें, पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें।
  • अब बुलाई गई तेरह महिलाओं को भोजन कराएँ। सबसे पहले चार चार पूड़ी वाली थाली से सबको परोसें। भोजन के पश्चात् महिलाओं को रोली से टीकी करें फिर एक प्लेट में सुहाग के सामान रखकर उपहार स्वरूप दें। देवर या जेठ के लड़के को सांख्या-साखी ( साक्षी ) बनाकर उसे खाना खिलाएँ। उसे नारियल और रूपये दें।
  • यदि तेरह महिलाओं को घर पर आमंत्रित करके भोजन कराना संभव ना हो तो उनके लिए परोसा ( एक व्यक्ति जितना खाना और चार चार पूड़ी जो निकाली थी उसमे से पूड़ी हलवा ) और सुहाग के सामान आदि उनके घर पर भिजवाया जा सकता है। इस प्रकार उद्यापन सम्पूर्ण होता है।

 

करवा चौथ व्रत कथा- Karwa Chauth Katha 

एक समय की बात है, सात भाइयों की एक बहन का विवाह एक राजा से हुआ। विवाहोपरांत जब पहला करवा चौथ

(karva chauth) आया, तो रानी अपने मायके आ गयी। रीति-रिवाज अनुसार उसने करवा चौथ का व्रत तो रखा किन्तु अधिक समय तक व भूख-प्यास सहन नहीं कर पा रही थी और चाँद दिखने की प्रतीक्षा में बैठी रही। उसका यह हाल उन सातों भाइयों से ना देखा गया, अतः उन्होंने बहन की पीड़ा कम करने हेतु एक पीपल के पेड़ के पीछे एक दर्पण से नकली चाँद की छाया दिखा दी। बहन को लगा कि असली चाँद दिखाई दे गया और उसने अपना व्रत समाप्त कर लिया। इधर रानी ने व्रत समाप्त किया उधर उसके पति का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। यह समाचार सुनते ही वह तुरंत अपने ससुराल को रवाना हो गयी।

रास्ते में रानी की भेंट शिव-पार्वती से हुईं। माँ पार्वती ने उसे बताया कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है और इसका कारण वह खुद है। रानी को पहले तो कुछ भी समझ ना आया किन्तु जब उसे पूरी बात का पता चला तो उसने माँ पार्वती से अपने भाइयों की भूल के लिए क्षमा याचना की। यह देख माँ पार्वती ने रानी से कहा कि उसका पति पुनः जीवित हो सकता है यदि वह सम्पूर्ण विधि-विधान से पुनः करवा चौथ का व्रत (karva chauth) करें। तत्पश्चात देवी माँ ने रानी को व्रत की पूरी विधि बताई। माँ की बताई विधि का पालन कर रानी ने करवा चौथ का व्रत संपन्न किया और अपने पति की पुनः प्राप्ति की।

वैसे करवा चौथ की अन्य कई कहानियां भी प्रचलित हैं किन्तु इस कथा का जिक्र शास्त्रों में होने के कारण इसका आज भी महत्त्व बना हुआ है। द्रोपदी द्वारा शुरू किए गए करवा चौथ व्रत (karva chauth vrat katha) की आज भी वही मान्यता है। द्रौपदी ने अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखा था और निर्जल रहीं थीं। यह माना जाता है कि पांडवों की विजय में द्रौपदी के इस व्रत का भी महत्व था।

चौथ माता की आरती (Chauth Mata Ki Aarti)

ऊँ जय करवा मइया, माता जय करवा मइया ।

जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया ।। ऊँ जय करवा मइया।

सब जग की हो माता, तुम हो रुद्राणी।

यश तुम्हारा गावत, जग के सब प्राणी ।। ऊँ जय करवा मइया।

कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, जो नारी व्रत करती।

दीर्घायु पति होवे , दुख सारे हरती ।। ऊँ जय करवा मइया।

होए सुहागिन नारी, सुख सम्पत्ति पावे।

गणपति जी बड़े दयालु, विघ्न सभी नाशे।। ऊँ जय करवा मइया।

करवा मइया की आरती, व्रत कर जो गावे।

व्रत हो जाता पूरन, सब विधि सुख पावे।। ऊँ जय करवा मइया।

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